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शब्द का अर्थ

संप्रदा  : पुं०=संप्रदाय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=संपदा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
संप्रदान  : पुं० [सं० सम्-प्र√दा (देना)+ल्युट्-अन] १. दान देने की क्रिया या भाव। २. दीक्षा के समय शिष्य को गुरु का मंत्र देना। ३. उपहार। भेंट। ४. व्याकरण में एक कारक जो उस संज्ञा की स्थिति का बोध कराता है जिसके निमित्त कोई कार्य किया गया होता है। इसकी निभक्ति ‘को’ तथा ‘के’ लिए है। ५. किसी की वस्तु उसे देना या उसके पास पहुँचाना। (डिलिवरी)
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संप्रदाय  : वि० [सं०] [वि० सांप्रदायिक] देने वाला। पुं० १. परम्परा से चला आया हुआ ज्ञान, मत या सिद्धात। २. परम्परा से चली आई हुई परिपाटी, प्रथा या रीति। ३. गुरु- परम्परा से मिलने वाला उपदेश या मंत्र। ४. किसी धर्म के अन्तर्गत कोई विशिष्ट मत या सिद्धान्त। ५. उक्त प्रकार का मत या सिद्धान्त मानने वालों का वर्ग या समूह। जैसा—वैष्णव या शैव सम्प्रदाय। फिरका। ६. कोई विशिष्ट धार्मिक मत या सिद्धन्त। धर्म। जैसे—भारत में अनेक मतों और सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। ७. किसी विचार, विषय या सिद्धान्त के संबंध में एक ही तरह के विचार या मत रखने वाले लोगों का वर्ग। (स्कूल) ८. मार्ग। रास्ता।
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संप्रदायक  : वि०=सांप्रदायिक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संप्रदायी (यिन)  : वि० [सं० सम्-प्र√दा (देना)+णिनि-पुक्] [स्त्री० संपर्दायिनी] १. देने वाला। २. कोई काम करने या कोई बात सिद्ध करने वाला। ३.किसी संप्रदाय का अनुयायी।
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