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शब्द का अर्थ

सहिंजन  : पुं०=सहिजन।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
सहि  : वि०=सभी। उदाःसमाचार इणि माहि सहि।—प्रिथीराज।
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सहिक  : वि० [सं० सह+हिं० इक (प्रत्य०)] १. जो सचमुच वर्तमान हो। सत्ता से युक्त। वास्तविक। २. जिसमें कोई विशिष्ट तत्व या भाव वर्तमान हो। ३. जिसमें किसी प्रकार की दुविधा या संकोच न हो। ठीक और निश्चित। ४. (कथन या मत) जो निश्चित और स्पष्ट रूप से प्रतिपादित या प्रस्थापित किया गया हो। ठीक मानकर और साफ-साफ कहा हुआ। ५. गणित में शून्य की अपेक्षा अधिक जो ‘धन’ कहलाता है। ६. (प्रतिकृति या मूर्ति।) जिसमें मूल के समान ही छाया या प्रकाश हो। जो उलटा न जान पड़े। सीधा। ‘नहिक’। का विपर्याय। (पॉजिटिव उक्त सभी अर्थों के लिए) पुं० १. ऐसा कथन या बात जिसमें किसी सत्व, मत या सिद्धांत का निश्चित रूप से निरूपण या प्रस्थापन किया गया हो। ठीकमानकर दृढता पूर्वक कही गई बात। २. किसी विषय, निश्चय आदि का वह अंश या पक्ष जिसमें उक्त प्रकार का निरूपण या प्रस्थापन हो। ३. ऐसी प्रतिकृति या मूर्ति जिसमें मूल की छाया के स्थान पर छाया और प्रकाश के स्थान पर प्रकाश हो। ऐसी नकल जो देखने में सीधा जान पड़े, उलटी नहीं। ४. छाया चित्र में नहिक शीशे पर से कागज पर छपी हुई वह प्रति जो मूल के ठीक अनुरूप होती है। नहिक का विपर्याय। (पॉज़िटिव, उक्त सभी अर्थों के लिए)
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सहिकता  : स्त्री० [हिं० सहिक+ता (प्रत्य०)] सहिक होने की अवस्था या भाव। (पॉज़िटिविटी, पाँजिटिवनेस)
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सहिजन  : पुं० [सं० शोभंजन] एक प्रकार का बड़ा वृक्ष जिसकी लंबी फलियाँ तरकारी अचार आदि बनाने के काम आती हैं। मुनगा।
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सहिजनी  : स्त्री० [सं० सज्ञान] निशानी। चिन्ह। पहचान। (दे० ‘सहदानी’)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहित  : अव्य० [सं० सह से] (किसी के) साथ। समेत। वि० १. किसी के साथ मिला हुआ युक्त। विशेष—सहित और युक्त में मुख्य अंतर यह है कि सहित का प्रयोग तो प्रायःक्रिया विशेषण पदों में होता है और युक्त का विशेषण पदों में। जैसे—(क) चतुर्थाँश सहित दे-दो। (ख) चतुर्थाँशयुक्त रूप। २. (प्राणायाम) जिसमें पूरक और रेचक दोनों क्रियाएँ की जाती हैं। (‘केवल’ से भिन्न) भू० कृ० [सं० सहन से] जो सहन किया गया हो। सहा हुआ।
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सहितव्य  : पुं० [सं सहित+त्व] सहित का धर्म या भाव।
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सहितव्य  : वि० [सं०√सह् (सहन करना)+तव्य] सहन होने के याग्य। जो सहा जा सके। सह्य।
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सहिथी  : स्त्री० [?] बरछी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहिदान  : पुं०=सहदानी (निशानी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सहिदानी  : स्त्री०=सहदानी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहिरिया  : स्त्री० [देश०] वसंत ऋतु की वह फसल जो बिना सींचे हुए होती है।
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सहिष्णु  : वि० [सं०√सह् (सहन करना)+इणुच्] जो कष्ट या पीड़ा आदि सहन कर सके। बरदाश्त करने वाला। सहनशील।
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सहिष्णुता  : स्त्री० [सं०] सहिष्णु होने की अवस्था, गुण या भाव। सहनशीलता।
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