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सावँकरन  : पुं०=श्यामकर्ण (घोड़ा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सावंत  : पुं०=सामंत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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साव  : पुं० [सं० सावक=शिशु] बालक। पुत्र। (डि०) पुं०=साहु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सावक  : पुं०=श्रावक (जैन या बुद्ध भिक्षु)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सावका  : अव्य० [अ० साबिक ?] नित्य। सदा। उदा०—वायु सावका करै लराई, माइया सद मतवारी।—कबीर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सावकाश  : अव्य० [सं०] अवकाश होने पर। छुट्टी या फुरसत के समय। पुं०=आकाश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सावगी  : पुं०=सरावगी। स्त्री०=किशमिश। (पंजाब)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सावचेत  : वि० [सं० सा+हिं० चेत] [भाव० सावचेती]=सावधान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सावज  : पुं० [सं० शावक ?]। जंगली जानवर जिसका शिकार किया है। (गेम)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सावणिक  : पुं० [सं० श्रावण] श्रावण मास। (डि०)
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सावत  : स्त्री० [हिं० सौत] १. सोंतो का आपस में भेद या डाह। सौतिया डाह। २. ईष्या। जलन। डाह। उदा०—तहँ गये मद मोह लोभ अति, सरगहूँ मिटत न सावत।—तुलसी।
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सावघ  : वि० [सं०] जिसके संबंध में कोई आपत्तिजनक बात कही जा सकती हो। जो किसी रूप में दोष, भ्रम आदि से युक्त हो। ‘निरवद्य’ का विपर्याय। जैसा—आपका यह कथन मेरी दृष्टि में कुछ सावद्य है। पुं० योग में तीन प्रकार की सिद्धियों में से एक। (शेष दो प्रकार निवद्य औऱ सूक्ष्म कहलाते हैं।)
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सावधान  : वि० [सं० अव्य० स०] [भाव० सावधान] १. जो अवधान या ध्यान पूर्वक कोई काम करता हो। २. जिसे ठीक समय पर तथा ठीक तरह से काम करने की प्रवृत्ति हो। ३. जो परिस्थितियों आदि की क्रिया शीलता के प्रति जागरुक तथा सचेत हो।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सावधानता  : स्त्री० [सं० सावधान+तल्—टाप्] १. सावधान होने की अवस्था, गुण या भाव। २. वह सुरक्षात्मक कार्रवाई जो खतरे आदि से सावधान रहने के लिये की जाती है।
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सावधि  : वि० [सं०] १. जिसकी कोई अवधि निश्चित हो। निश्चितकार्य-कालवाला। २. जिसकी सीमा बाँध दी गई हो।
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सावन  : पुं० [सं० श्रावण] १. आसाढ़ के बाद और भाद्रपद के पहले का महीना। श्रावण। २. वर्षा ऋतु में गाया जाने वाला एक प्रकार का गीत। पुं० [सं०] १. सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक का काल या समय। पूरा एक दिन और एक रात जिसका मान ६॰ दंड है। २. यज्ञ का अंत या समाप्ति। ३. यजमान। ४. वरुण। वि० १. एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक के काल से संबंध रखने वाला। २. (काल-मान) जिसकी गणना एक सूर्योदय दूसरे सूर्योदय तक काल के विचार से हो। जैसे—सावन दिन-सावन मास, सावन वर्ष आदि। पुं० [?] मँझोले आकार का एक प्रकार का वृक्ष जिसका गोंद ओषधि के रूप में काम आता है और मछलियों के लिये विष होता है। पुं०=सावनी (गीत)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सावन दिन  : पुं० [सं०] १. उतना समय जितना सूर्य को एक बार याम्योत्तर रेखा से चलकर फिर वहीं आने में लगता है। २. एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक का समय। ६॰ दंडों का समय। विशेष—(क) यह नक्षत्र दिन से कभी कुछ छोटा तथा कभी कुछ बड़ा होता है इसलिये, ज्योतिषी लोग नक्षत्र मान का ही व्यवहार करते हैं। (ख) तीन सौ साठ सौर दिनों का एक सावन वर्ष होता है।
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सावन भादों  : पुं० [हिं०] राजमहल का वह विभाग जिसमें जल विहार के लिये तालाब, झरने, फुहारे आदि होते थे। अव्य० सावन और भादों के महीने में।
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सावन-मास  : पुं० [सं०] भारतीय ज्योतिष की गणना के अनुसार व्यापारिक और व्यवहारिक कार्यो के लिये माने जाने वाला एक प्रकार मास जो किसी तिथि से आरंभ होकर उसके तीसवें दिन तक होता है। यदि गणना चाँद मास की तिथि के अनुसार हो तो उसे चाँद्र सावन कहते है। और यदि सौर मास की तिथि के अनुसार हो तो उसे सौर सावन मास कहते हैं।
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सावन वर्ष  : पुं० [सं०] ज्योतिष की गणना में वह वर्ष जो ३६॰ सौर दिनों का होता है। (ट्रापिकल ईयर)
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सावन हिंडोला  : पुं० [हिं०] वे सब गीत जो (क) स्त्रियाँ सावन में झूला झूलने के समय गाती हैं अथवा (ख) देवताओं के झूलने के उत्सव के समय गाते जाते हैं। ऐसे गीत तो प्रायः श्रृंगारात्मक होते हैं।
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सावनी  : वि० [हिं० सावन (महीना)] १. सावन संबंधी। सावन का। २. सावन में होने वाला। स्त्री० १. सावन में गाया जाने वाला एक प्रकार का गीत। २. सावन में वर पक्ष से कन्या के लिये भेजे जाने वाले कपड़े, फल, मिठाइयाँ आदि। ३. सावन के लगभग तैयार होने वाली फसल। ४. एक प्रकार का पौधा और उसके फूल। पुं० सावन में तैयार होने वाला एक प्रकार का धान। स्त्री०=श्रावणी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सावनी कल्याण  : पुं० [हिं० सावनी+सं० कल्याण] सावनी और कल्याण के मेले से बना हुआ एक प्रकार का संकर राग। (संगीत)
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सावर  : पुं० [सं० सवर+अण्] १. लोभ। २. अपराध। दोष। ३. पाप। पुं० १. =शाबर। २. =साबर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सावरणी  : स्त्री० [सं० सावरण—ङीप्] वह बुहारी जो जैन यति अपने साथ रखते हैं।
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सावरिका  : स्त्री० [सं० सावर+कन्-टाप्,इत्व] एक प्रकार की जोंक जो जहरीली नहीं होती।
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सावर्ण  : वि० [सं० सवर्ण+अण्] जो एक जाति या वर्ण के हों। सवर्ण। पुं० दे० सावर्णि।
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सावर्णक  : पुं० [सं० सावर्ण+कन्]=सावर्णि।
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सावर्णि  : पुं० [सं सवर्णा+इञ्] सूर्य के पुत्र आठवें मनु। २. उक्त मनु का मन्वन्तर।
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सावर्णिक  : वि० [सं० सावर्णि+कन्] जिनका संबंध एक ही जाति या वर्ण से हो।
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सावर्ण्य  : पुं० [सं० सवर्ण+ष्यञ्] सवर्ण होने की अवस्था, गुण या भाव।
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सावष्टंभ  : पुं० [सं० अव्य० स०] ऐसा मकान जिसके उत्तर-दक्षिण सड़क हो। (ऐसा मकान बहुत शुभ माना जाता है।) वि० १. मजबूत। दृढ़। २. आत्म-निर्भर।
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साविका  : स्त्री० [सं० अव्य० स०] धाय। दाई।
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सावित्र  : वि० [सं०] सविता अर्थात सूर्य-संबंधी, जैसा—सावित्र होम। २. सविता या सूर्य से उत्पन्न। पुं० १. सूर्य। २. शिव। ३. वसु। ४. ब्राह्मण। ५. सूर्य के पुत्र। कर्ण। ६. गर्भ। ७. यज्ञोपवीत। ८. एक प्रकार प्राचीन अस्त्र।
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सावित्री  : स्त्री० [सं०] १. सूर्य की किरण। २. ऋग्वेद का गायत्री नामक मंत्र जिसमें सूर्य की स्तुति की गई है। ३. सरस्वती। ४. सूर्य की एक पुत्री जो ब्रह्मा को ब्याही थी। ५. दक्ष की एक कन्या जो धर्म की पत्नी थी। ६. मत्स्य देश के राजा अश्वपति की कन्या जो सत्यवान को ब्याही थी और जिसने सत्यवान को काल के हाथ छुड़ाया था। इसकी गणना परम सती स्त्रियों में होती है। ७. कोई सती साध्वी स्त्री। ८. साधवा स्त्री। ९. सरस्वती नदी। १॰. यमुना नदी। ११. उपनयन संस्कार। १२. आँवला।
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सावित्री व्रत  : पुं० [सं०] एक व्रत जो स्त्रियाँ जेष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को अपने पति की दीर्घायु की कामना से करती हैं।
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सावित्री सूत्र  : पुं० [सं० ष० त० मध्यम० स०] यज्ञोपवीत। यज्ञोपवीत जो सावित्री दीक्षा के समय धारण किया जाता है।
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सावित्रेय  : पुं० [सं० सावित्री+ढक्—एय] यमराज। यम।
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सावेरी  : स्त्री० [?] संगीत में भैरव ठाठ की एक प्रकार की रागिनी।
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