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शब्द का अर्थ

सोह  : स्त्री०=सौंह (सौगंद)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अव्य०=सौंह (सामने)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहँ  : स्त्री=सौंह (कसम)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) अव्य० सौंह (सामने)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहंज  : दे०=सोऽहम्।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहंग  : अव्य=सोहम्।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० =सांस।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहंम  : अव्य०=सोहम्।
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सोहगी  : स्त्री० [हिं० सोहाग] विवाह के पूर्व कन्या के लिए घर पक्ष वालों की तरफ से भेजी जाने वाली चीजें जो सौभाग्य सूचक मानी जाती हैं।
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सोहगैला  : पुं० [हिं०सुहाग या सोहाग] [स्त्री० अल्पा० सोहगैली] लकड़ी की वह कँगूरेदार जिसमे विवाह के दिन सिंदूर भरकर देते हैं। सिंदूरा।
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सोहड़  : पुं०=सुभट।(राज०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहन  : वि० [सं० शोभन, प्रा० सोहण] [स्त्री० सोहनी] अच्छा लगने वाला। सुंदर। सुहावना। पुं० १. सुन्दर पुरुष। २. स्त्री के लिए उसका पति या प्रेमी। पुं० एक प्रकार का बड़ा जंगली वृक्ष। स्त्री० =सोहन चिड़िया। पुं० [?] एक प्रकार का रंदा।
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सोहन-चिड़िया  : स्त्री० [हिं०] एक प्रकार का बड़ा पक्षी जिसका माँस स्वादिष्ट होता है।
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सोहन-पापड़ी  : स्त्री० [हिं० सोहन+पापडी़] मैदे की बनी हुयी एक प्रकार की मिठाई जो जमें हुए कतरों या लच्छों के रूप में होती है।
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सोहन-हलुआ  : पुं० [हिं० सोहन+हलुआ] एक प्रकार की बहुत बढ़िया और स्वादिष्ट मिठाई जो जमें हुए कतरों के रूप में और घी से तर होती है।
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सोहना  : अ० [सं० शोभा] सुशोभित होना। फाबना। वि० [स्त्री० सोहनी] सुंदर और सुहावना। पुं० [फा० सोहान] कसेरों का छेद करने का एक औजार। स० [सं० शोधन] १. साफ करना। २. निराई करना।
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सोहनी  : स्त्री० [हिं० सोहना] १. झाड़। बुहारी। २. खेत में की जानेवाली निराई। ३. निराई करते समय गाया जानेवाला गीत। ४. आधी रात के बाद गाई जाने वाली एक रागिनी।
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सोहबत  : स्त्री० [अ०] १. संग—साथ। संगत। पद–सोहबत का फल=वह बात (विशेषतः बुरी बात) जो बुरी संगत के कारण सीखी गयी हो। २. स्त्री—प्रसंग। संभोग।
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सोहबतदारी  : स्त्री० [अ०+फा०] स्त्री—प्रसंग। संभोग।
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सोहबती  : वि० [अ० सुहबत] जिससे सोहबत हो। साथी। संगी।
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सोहमस्मि  : अव्य०=सोऽहमस्मि।
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सोहर  : पुं० [हिं० सोहना, सोहला] १. घर में संतान होने पर गाया जाने वाला मंगल गीत। २. उक्त अवसर पर गाये जाने वाले गीतों की संज्ञा। ३. मांगलिक गीत। स्त्री० [?] नाव का फर्श। २. पाल खीचने की रस्सी। विशेष–खिलौना (गीत) और सोहर में यह अंतर है कि सोहर में तो पुत्र जन्म की पूर्व-पीठिका का उल्लेख होता है; परंतु खिलौना में उत्तर-पीठिका का उल्लेख होता है। इसमें आनंद और उत्साह का मात्रा अधिक होती है।
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सोहरत  : स्त्री० =शोहरत (प्रसिद्धि)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहराना  : स०=सहलाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहला  : पुं०=सोहर (गीत)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहली  : स्त्री० [?] माथे पर पहनने का एकस गहना। (राज०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहाइन  : वि०=सुहावना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहाई  : स्त्री० [हिं० सोहना=आई (प्रत्य०)] १. सोहने की क्रिया या भाव। निराई करना। २. निराई करने की मजदूरी।
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सोहाग  : पुं०=सुहाग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहागा  : पुं०=सुहागा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहगिन (नी)  : स्त्री०=सुहागिन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहगिल  : स्त्री०=सुहागिन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहाता  : वि० [हिं० सोहाना] [स्त्री० सोहानी] १. सोहानेवाला। फबनेवाला। २. सत्य।
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सोहान  : पुं० [फा०] रेती नामक औजार।
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सोहाना  : अ०=सुहाना (भला लगना)। अ० [सं० सहन] बरदाश्त होना। जैसे–आपकी बात उनको नहीं सोहाती। (पश्चिम)
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सोहापा  : वि०=सुहावना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहारद  : पुं०=सौहार्द (सदभाव्)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहारी  : स्त्री० [हिं० सोहाना=रचना] पूरी नाम का पकवान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहाल  : पुं० =सुहाल (पकवान)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहाली  : स्त्री० [?] ऊपर के दाँतो का मसूड़ा। ऊपरी दाँतों के निकलने की जगह। स्त्री० =सोहारी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहावटी  : स्त्री० [हिं० सोहाना ?] १. पत्थर की वह पटिया या लकड़ी यो मोटा तख्ता जो खिड़की या दरवाजे के ऊपरी भाग पर पाटन के रूप में लगा रहता है। करगहना। २. ईटों आदि की उक्त प्रकार की जोड़ाई या सीमेंट आदि की ऐसी रचना। (लिन्टेल)
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सोहावन  : वि०=सुहावना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहावना  : वि०=सुहावना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) अ० सुहाना (भला लगना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहासित  : वि० [सं० सुभाषित] प्रिय लगने वाला। रुचिकर। पुं० चापलूसीं की बातें। ठकुर—सुहाती।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहि  : अव्य०=सौंह (सामने)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहनी  : वि० स्त्री० =सोहनी।
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सोहिल  : पुं०=सुहेल (अगस्त्य तारा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहिला  : पुं०=सोहला (सोहर)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहीं (हैं)  : अव्य०=सौंह (सामने)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सोहौटी  : स्त्री० =सोहावटी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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